2022 में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 38% कामकाजी माताओं ने पूर्ण मानसिक और भावनात्मक टूटन का अनुभव किया, और 55% कामकाजी माताओं को बार-बार भावनात्मक और मानसिक टूटन या कार्यस्थल पर बर्नआउट का सामना करना पड़ा।क्या आप एक कामकाजी माँ हैं? तो आपको इससे संबंधित होना चाहिए: सुबह 5 बजे उठना, खुद को तैयार करना, अपने बच्चों के लिए भोजन तैयार करना, उन्हें स्कूल भेजना, फिर 8 घंटे के कार्यदिवस के लिए कार्यालय जाना। घर वापस आकर, आप बिना किसी ब्रेक के सीधे घर के कामों में लग जाती हैं, और इससे पहले कि आप कुछ समझ पातीं, रात हो जाती है।एक बार फिर, आपको अपने बच्चे के साथ खेलने या उनके साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताने का मौका नहीं मिला, और आप इसके बारे में सोचते-सोचते सो जाती हैं क्योंकि कल भी यही दिनचर्या आपका इंतजार कर रही है।हर दिन, अपने परिवार, बच्चों, पति और कार्यालय की विविध मांगों को पूरा करने की कोशिश करते हुए, आप अक्सर अपना ख्याल रखना भूल जाती हैं। इतना सब कुछ संभालने के बाद, जब कोई आपकी सराहना नहीं करता, या कोई कहता है कि आप अपने बच्चे की परवरिश ठीक से नहीं कर रहे हैं, या परिवार और बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारियों के कारण आप अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहे हैं, तो यह तनाव बर्नआउट में बदल जाता है।इसे भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक टूटन के रूप में भी जाना जाता है। तो, आप अपनी नौकरी और तनाव के बिना अपने बच्चे की देखभाल के बीच संतुलन बनाने के लिए क्या कर सकते हैं? यह आसान है, बस इन 5 नियमों का पालन करें:1. एक सख्त दिनचर्या की योजना बनाएँ जहाँ आप घर के काम और दफ़्तर के काम के लिए अलग-अलग समय निर्धारित करें। इससे एक सीमा बनती है: दफ़्तर के समय कोई घर का काम नहीं और घर के समय कोई दफ़्तर का काम नहीं।2. नियम है अपने लिए समय निकालना। अगले दिन के कामों की योजना रात को ही बना लें, किराने का सामान ऑनलाइन मंगवा लें या अनावश्यक सामाजिक कार्यक्रमों से मना कर दें। इस समय का उपयोग खुद का ख्याल रखने में करें।3. नियम है काम के कारण सही पालन-पोषण न कर पाने या अपने परिवार को पर्याप्त समय न दे पाने के लिए अपराध-बोध को छोड़ देना। दूसरों से अपनी तुलना न करें या किसी और की अपेक्षाओं से अपनी कीमत न आँकें। इसके बजाय, स्वीकार करें कि आप एक अच्छी माँ हैं।4. नियम है "नहीं" कहना सीखना। बहुत से लोगों को "नहीं" कहना मुश्किल लगता है क्योंकि उन्हें नापसंद किए जाने की चिंता होती है। हालाँकि, अगर आपको पता है कि कोई खास काम करना या किसी दोस्त के साथ बाहर जाना आपकी निजी ज़िंदगी से कम महत्वपूर्ण है, तो "नहीं" कहना ठीक है। इसमें कोई समस्या नहीं है।5. नियम है कि अपने काम का बोझ अपने साथी, अपने पति के साथ बाँटें। वे आपकी काफ़ी मदद कर सकते हैं, जिससे आपका तनाव कम हो सकता है।Source:- 1. https://link.springer.com/article/10.1007/s10826-017-0892-4 2. https://www.researchgate.net/publication/312566114_DETERMINANTS_OF_WORK-LIFE_BALANCE_FOR_WORKING_MOTHERS
बड़ी पुरानी कहावत है, “You are what you eat”. इसका मतलब साफ है, आपके brain और पेट का काफी strong relation है। और इन दोनों को एक साथ link करता है एक nerves जिसे vagus nerves कहते है। Vagus nerve के through ये दोनों में messages transfer होते है।यकीन नहीं होता, आइये एक example से समझते है।जब भी आपका कोई exam होता है, आपको nervousness feel होता है, लेकिन साथ ही पेट में भी अजीब सा दर्द होने लगता है, और कभी तो diarrhea भी हो जाता है। होता है ना?अब सोचिये, जब भी आपको बहुत भूख लगती है, तो साथ में गुस्सा क्यों आने लगता है?ये इसलिए क्यों कि brain और gut एक दूसरे से related होते है। तो सोचने वाली बात है, हम अगर अच्छा और healthy खायेंगे तो brain भी healthy होगा।आइये जानते है 5 Superfoods के बारे में जो आपके mental health के लिए बहुत अच्छे है:Avocados: Avocado में vitamin B3, B5, B9, vitamin C और vitamin E की भरपूर मात्रा होती है। इन vitamins का काफी important role होता है, brain के nerves को healthy और protected रखने में, neurotransmitters को produce करने में, और brain में blood flow maintain करने में।Eggs: Eggs में vitamin B1,2,3,6 और 12 होते है जो brain को normally function करने में help करते है। साथ ही eggs में choline और leitin होता है, जो आपकी memory power को increase करता है।Walnuts: Walnuts ya Akhrot में भरपूर मात्रा में antioxidants होते है जो brain को damage से बचाते है और memory और learning को बढ़ाते है और dementia यानी यादाश खो जाने वाली बीमारी से बचाता है।Salmon: Salmon एक fish है जिसमें Omega 3 fatty acids होते है, जो brain को damage से protect करते है, और इसमें रहे antioxidants आपके brain को उम्र के साथ होने वाली mental problems से बचाता है।Blueberry: Blueberries में हर fruit से antioxidants की मात्रा ज्यादा होती है। और ये antioxidants आपके brain की memory को improve करता है और brain को young रखता है।source.. https://www.researchgate.net/publication/343534587_The_effect_of_food_on_mental_health
अकेलापन हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर काफी हद तक प्रभाव डालता है। World Health Organization का कहना है कि 4 में से 1 वृद्ध व्यक्ति और लगभग 5 से 15 प्रतिशत adolescents अकेलापन महसूस करते हैं। यह उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।हर व्यक्ति के जीवन में मानसिक स्वास्थ्य का अपना ही महत्व होता है।मानसिक बीमारियां आज के समय में बहुत ज्यादा देखने को मिलती है और इस COVID-19 की महामारी ने यह बोझ और भी ज्यादा बढ़ा दिया है।अकेलापन आखिर क्या कर रहा है?अकेलापन समाज में होने वाली मानसिक समस्याओं का एक बड़ा कारण है।देखा गया है कि यही अकेलापन depression के साथ-साथ कुछ अन्य मानसिक समस्याओं से भी जुड़ा हुआ है। सभी उम्र और क्षेत्र के लोग, कोई भी - कहीं भी इस अकेलेपन का शिकार बन सकता है।अकेलेपन का हमारे स्वास्थ्य और जीवन पर बहुत गंभीर असर पड़ता है। World Health Organization का कहना है कि जो लोग लंबे समय तक अकेलापन महसूस करते हैं उनमें :Anxiety, depression, suicide और dementia जैसी परेशानियां देखने को मिलती हैं।हृदय रोग और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता हैकम उम्र में मृत्यु होने की अधिक संभावना होती हैअकेलापन न सिर्फ एक व्यक्ति को नुकसान पहुंचता है बल्कि समाज पर भी इसका बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।लोग इतना अकेलापन क्यों महसूस करते हैं:कुछ लोगों को, जीवन में बदलाव स्वीकार करने में, काफी मुश्किल होती है। अकेलापन महसूस करने के कुछ कारण:घर से काम करनाबच्चों का अपनी पढ़ाई/ नौकरी के लिएअलग शहरों में बस जानाबच्चों का बार-बार स्कूल बदलनाहम क्या कर सकते हैं?कुछ तरीके जो अकेलेपन को कम करने में मदद कर सकते हैं:सभी उम्र के लोग एक साथ कुछ समय व्यतीत करें, जहां वह साथ में भोजन कर सकते हैं या कुछ मनोरंजक गतिविधियों में भाग ले सकते हैंपार्टियों, फिल्मों, खेलों आदि के लिए इकट्ठा होंक्लब बनाएं और उनमें भाग लेंसभी लोगों के साथ अच्छे संबंध बनाएंसमुदाय और अन्य सामाजिक समूहों में वृद्ध वयस्कों को भी शामिल करेंCarpool करेंसमाज के बेहतर मानसिक स्वास्थ्य के लिए यह बहुत जरूरी है कि हम अकेलेपन से निपटने के लिए सभी उम्र के और सभी क्षेत्रों के लोगों को एक साथ लाएँ।Source:-1. https://www.who.int/groups/commission-on-social-connection#:~:text=Anyone%2C anywhere%2C can be lonely,of our communities and society.2. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC9636084/3. https://www.apa.org/monitor/2019/05/ce-corner-isolation
काफी सारे फेमस सेलिब्रिटी जैसे दीपिका पादुकोण, शाहरुख खान, करण जौहर, या हनी सिंह को डिप्रेशन हुआ था। लेकिन हैरानी तब हुई जब स्टार किड्स जैसे, सुहाना खान, शाहीन भट्ट, और इरा खान को डिप्रेशन हुआ, वो भी काफी कम उम्र में।तो क्या बच्चों में भी डिप्रेशन हो सकता है?असल में, बच्चों में काफी नॉर्मल होता है, कभी कभी शांत रहना, बात बात पे गुस्सा करना, चिल्लाना, इरिटेट हो जाना, और फिर कुछ देर बाद ही आपका बच्चा वापस खेलने लग जाता है।लेकिन कभी कभी बच्चे ज्यादा शांत रहने लगते हैं, यही चिड़चिड़ापन ज्यादा दिखने लगता है। और जब ये सारे लक्षण 1 हफ्ते से ज्यादा दिखने लगते हैं, तो आपका बच्चा ठीक नहीं है, उसे डिप्रेशन हो सकता है।Research के मुताबिक, करीब 3% बच्चे और 8% teenagers को डिप्रेशन होता है।बच्चों में डिप्रेशन होने के कई सारे कारण हो सकते हैं, जैसे कि: Family history या genetic history यानि family में किसी को especially मम्मी पापा में से किसी को पहले डिप्रेशन की history रही हो, stress देने वाली बातें जैसे कि किसी अपने की death हो जाना, या parents का divorce हो जाना, या फिर कोई physical injury या बीमारी होना, या फिर school में बाकी बच्चों के द्वारा bully होना। ये सब चीजें कारण हो सकती हैं आपके बच्चे में डिप्रेशन होने का।अब सवाल आता है, कि पता कैसे लगाएं कि आपके बच्चे को डिप्रेशन हुआ है:बच्चों में अगर डिप्रेशन है, तो ये सारे लक्षण दिखाई देंगे जैसे कि:आपका बच्चा पहले से ज्यादा sad या irritated रहने लग सकता है यानी उसको mood changes हो रहे हैं। पहले जिन कामों में मजा आता था अब वो सब में उसे बिल्कुल interest नहीं आता है। Energy level एकदम कम हो जाना, या बहुत ज्यादा थकान होना। आपका बच्चा negative बातें करने लग जाए, जैसे मैं अच्छा नहीं हूँ, मेरा कोई दोस्त नहीं है, या फिर मैं पढ़ने में अच्छा नहीं हूँ। आपका बच्चा, बाकी दिनों से काफी कम या काफी ज्यादा खाना खाने लग जाता है। आपका बच्चा बहुत ज्यादा सोता है या सोता ही नहीं है।अगर आपके बच्चे में भी ये सारे symptoms नजर आ रहे हैं, तो अपने doctor से मिलिए।Source:-1. https://link.springer.com/article/10.1007/s10826-017-0892-42. https://www.researchgate.net/publication/312566114_DETERMINANTS_OF_WORK-LIFE_BALANCE_FOR_WORKING_MOTHERS
Emotional hangover, यानि कोई ऐसी घटना जिसका असर दिमाग और शरीर दोनों पे हो, और आपको थका थका या चिढ़चिढ़ा महसूस होने लगे, जैसे किसी अपने से बहस हो जाना, नई जॉब का स्ट्रेस या किसी की डेथ हो जाना। इमोशनल हैंगओवर का असर स्ट्रेस और डिप्रेशन से काफी मिलता-जुलता है। ये हैंगओवर बिलकुल शराब पीने के बाद वाले हैंगओवर जैसा ही होता है।Emotional hangover का पता लगाने के लिए, ये लक्षण का ध्यान दें: रात को अच्छे से सोने के बाद भी दिन में थका थका महसूस करना। शरीर में अकड़न या दर्द होना। सिर दर्द या सिर चकराना उल्टी आना किसी भी काम पे ध्यान न दे पाना चिढ़चिढ़ापन उदास होना रोना आना किसी से बात न करना या फिर घबराहट होनाअगर आपको भी emotional hangover हुआ है तो, उससे ठीक करने के लिए ये 5 तरीके अपनाएँ:हल्का खाना खाएँ और पानी पीते रहें।Exercise करें या कोई creative काम करें जैसे painting, या guitar बजाना।अगर फील हो तो, थोड़ा और सो लीजिए ताकि आपको अच्छा फील हो।बाहर, किसी natural जगह पे जाइए, और वहाँ टाइम स्पेंड कीजिए।जो आपका मन करे वो काम कीजिए और अपनों से बात कीजिए, प्रॉब्लम शेयर कीजिए। आपको अच्छा लगेगा और emotional hangover भी खत्म हो जाएगा।source: https://www.sciencedaily.com/releases/2016/12/161226211238.htm https://www.sciencedirect.com/science/article/abs/pii/S030646032300014X
बिना शराब पिए हैंगओवर हुआ है कभी? मेरा मतलब वही same हैंगओवर वाली फीलिंग, इमोशनल होना, शरीर और दिमाग दोनों, थक के काम कम ना कर रहे हो? समझ नहीं आया.. आइए समझते हैं!क्या कभी ऐसा हुआ है, कि घर में किसी से बहस हो गई या फिर बहुत बुरा जॉब इंटरव्यू हुआ हो? और ठीक इस अनुभव के बाद आपको बहुत ज्यादा थकान महसूस होने लगती है, आप इमोशनल हो जाते हो, सर में भरापन, और दिमाग काम करना बंद कर देता है, बस जी करता है, कि बेड में पड़े रहें।ऐसा काफी लोगों के साथ होता है, लेकिन इसका क्या नाम है किसी को पता नहीं होता। इस कंडीशन को Emotional Hangover कहते हैं, जिसका असर बिलकुल शराब के बाद वाले हैंगओवर जैसे होता है।तो, Emotional Hangover क्यों होता है?Emotional Hangover तब होता है, जब आप ऐसे किसी situation में आते हैं, जहाँ आपका emotion, या feelings, trigger होती है जैसे कि:फैमिली में या किसी क्लोज पर्सन से बहस हो गई हो, काम का stress हो, लाइफ में बड़े changes हुए हों जैसे, नई नई शादी होना, job shift होना, एक शहर से दूसरे शहर में move होना या फिर किसी अपने की death हो गई हो।ऐसी कंडीशन में stress का level बहुत हाई हो जाता है, और आपके दिमाग में stress hormone यानी cortisol बहुत बढ़ जाता है। और जब आप इस कंडीशन से recover होने के लिए आपके body और brain को time चाहिए होता है, जिसके कारण आपको थकान, चिढ़चिढ़ापन, या सोचने समझने में दिक्कत आने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।ये एक normal तरीका है आपके body का आपसे time मांगने का, ताकि वो खुद को वापस से संभाल पाए और ठीक से सब काम कर सके।source: https://www.sciencedaily.com/releases/2016/12/161226211238.htm https://www.sciencedirect.com/science/article/abs/pii/S030646032300014X
आज के समय में, हर किसी को टेंशन है, parents को family और finances की टेंशन, तो बच्चों को assignment पूरी करने की टेंशन, किसी को exams पास करने की टेंशन है तो, किसी को अपने job की टेंशन है, और जब कोई इंसान इन सब टेंशन को easily tackle नहीं कर पाता तो, यही tension उसके gussa, frustration, या नाउम्मीद ka karan ban jata है।अब यही टेंशन जब दिमाग और शरीर दोनों पे हावी होने लगता है तो उसे, stress का नाम दे दिया जाता है।वैसे कभी-कभी छोटी-मोटी stress होनी भी चाहिए, इससे काफी सारे काम जैसे assignment या project submit करना हो, तो time पे हो जाते हैं। लेकिन अगर यही stress ज्यादा दिनों तक होने लग जाए तो, फिर आपके health के लिए काफी खतरनाक हो सकता है। इस बात को ऐसे ही ignore मत कीजिए, यह आपके ही health और benefit के लिए है। आइए, detail में समझते हैं। जब भी आपको stress होता है, तो आपकी body में एक hormone जिसका नाम cortisol है, वो release होने लगता है।Cortisol को stress hormone भी कहा जाता है। यह hormone आपके brain को काफी alert कर देती है, body के muscles को शक्ति बना देती है, और साथ ही आपके heart rate में भी changes होने लगते हैं। ये सब आपकी body का खुद का defense mechanism है उस stress से deal करने का, लेकिन जब ये stress higher stages में पहुँच जाता है, तो आपको बहुत सारी बीमारियाँ हो सकती हैं जैसे:Obesity या मोटापाDiabetesHigh blood pressureHeart related problemsDepressionAnxietyAcne breakoutsMenses problem, और भी कई सारी बीमारियों को और severe भी बना सकता है।अब सवाल आता है कि stress हो रहा है ये पता कैसे चलेगा?जब भी आपको stress होता है, तो आपकी body कुछ ऐसे signs देती है जो आपको आगे आने वाली health risk से बचा सकती है, जैसे कि:DiarrheaConstipationचीजों को जल्दी भूल जानाबार-बार body pain होनागर्दन का अकड़ जानाHeadache होना,हर वक्त थका-थका महसूस करनानींद ढंग से ना आनाया एकदम ज्यादा सोनाWeight बढ़ जाना या घटने लगनाऔर शराब या किसी दवाई के सहारे खुद को शांत feel कराना।source: https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3341916/ https://ijip.in/wp-content/uploads/2022/09/18.01.128.20221003.pdf
Parenthood: क्या यह आसान है या मुश्किल? माता-पिता के लिए अलग-अलग समय पर यह एक अलग एहसास हो सकता है, किंतु बच्चों के लिए माता-पिता ही सब कुछ होते हैं। वह अपने माता-पिता को एक देवदूत की तरह देखते हैं जो उनके लिए सब कुछ सुलझा सकते हैं।एक parent होने के नाते मैं आपकी स्थिति को पूरी तरह समझती हूं और यह भी जानती हूं कि मेरी तरह सभी मां-बाप के लिए अपने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य से ऊपर कुछ भी नहीं है।यह 5 टिप्स आपको अपने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने में मदद करेंगी:बच्चों को सुने और उन्हें प्रोत्साहित करें: सुनिश्चित करें कि बच्चे हमेशा आपसे अपने विचार और भावनाओं के बारे में आसानी से बात कर सके। उनकी बातों का सकारात्मक (positive) रूप से जवाब दें। उन पर हमेशा विश्वास करें एवं धैर्य रखें।बच्चों पर पूरा ध्यान दें: बच्चों से बात करते समय उनसे आंखों का संपर्क बनाए रखें। उसे दौरान अपने मोबाइल या टीवी पर ध्यान बिल्कुल ना दे।बच्चों की रुचि को अपनी रुचि बनाएं: बच्चों के साथ उनके पसंदीदा टीवी शो संगीत या किसी प्रसिद्ध व्यक्ति के बारे में बात करें। खाना पकाने या योग जैसी चीज उनके साथ में करें। इससे आपको अपने बच्चों के करीब जाने में मदद मिलेगी।बच्चों को पुरस्कार दें एवं प्रोत्साहित करें: बच्चों के कुछ अच्छा करने पर हमेशा उनकी प्रशंसा करें। उनके लिए एक सकारात्मक role model बनें। उन्हें बताएं कि भावनात्मक होने में कुछ भी गलत नहीं है, उन्हें बताएं कि प्यार, गुस्सा, खुशी और दुख इन सभी को जब भी वह महसूस करें, उसे आपके साथ व्यक्त जरूर करें।पारिवारिक नियम बनाएं: आपसी समझ से तय किए गए नियम बच्चों को सुरक्षित महसूस कराते हैं। नियमों के पालन पर बातचीत करने से चिंता, गुस्सा और अविश्वास कम हो सकता है। बच्चों के साथ टीम बनाकर कुछ कार्य करें जिससे आप दोनों का समय साथ में व्यतीत हो सके।अक्सर देखा गया है कि बहुत सी परेशानियां तो सबके साथ बैठने और मिलकर समस्याओं का समाधान ढूंढने से ही हल हो जाती है। कभी-कभी परेशानियां उतनी बड़ी होती नहीं है जितना हम उन्हें बना देते हैं। आई आज अपने आप को बदले और अपने बच्चों को मानसिक रूप से स्वस्थ रहने में मदद करें।
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