Kabhi aisa feel kiya hai jaise aap enough nahi ho? Jaise aapka body standard baaki logon se match nahi karta ho? Aap akelay nahi ho! Bahut se teens aur young adults self-esteem aur body image issues se struggle karte hain. Actually, studies kehti hain ki 35% teens ko body image issues hotay hain. Jab hum TV, movies, aur social media par unrealistic beauty standards dekhte hain, toh aisa feel karna normal hai.Yaad rakho, self-esteem aap aur apne baare mein feel karne se related hai. Yeh apni body ko perceive aur feel karne ka tarika hai. Apni body ke baare mein high self-esteem aur confidence rakhne mein kuch galat nahi hai. Jab aap apne baare mein confident feel karte ho, toh yeh healthier choices aur better relationships ki taraf lead karta hai.Lekin positive self-image ko nurture karna peer pressure ke beech mein mushkil ho sakta hai. Peer pressure ka matlab hota hai doosron ka aap par influence dalna.Jab aapko fit in karna ho, toh peer pressure resist karna difficult ho sakta hai. Lekin yeh yaad rakhein ke aapko har cheez follow karna zaroori nahi hai.Apne aap mein ek beautiful self-image ko train karne ke liye aur peer pressure ko avoid karne ke liye, kuch tips:Apne strengths par focus karein: Har kisi mein strengths hoti hain. Apne strengths likho aur un par kaam karo.Apne saath honest raho: Apne aap ko motivated individuals ke saath rakho. Aise logo ki company mein raho jo aapko uplift karein.Apne body ka khayal rakhein: Healthy meals khayein, acchi neend lein, aur regular exercise karein.Realistic goals set karein: Perfect hone ki koshish mat karo. Aise goals set karo jo achievable hain aur unhe achieve karne ki koshish karo.No kehna seekho: Aise kaamon ko turn down karne se na daro jo aap karna nahi chahte.Ek hobby find karo: Koi aisi hobby rakho jo aap enjoy karte ho, yeh aapke self-esteem aur confidence ko improve karega.Kisi trustable person se baat karo: Agar aap image ya self-esteem issue se fight kar rahe hain, toh kisi par bharosa karein aur unse baat karein - chahe woh parent ho, teacher ho, ya counselor.Yaad rakhein ki aapko love aur acceptance deserve karne ke liye perfect hone ki zaroorat nahi hai. Apne positive self-image ko develop karo aur peer pressure ko handle karo.Aur agar aap ya aapka koi dost udaas, anxious, ya stressed feel kar rahe ho, toh kisi trusted adult jaise parent, teacher, ya counselor se baat karo.Source:- https://www.nationaleatingdisorders.org/
World Health Organization के अनुसार, panic disorder दुनिया भर में सबसे common mental health problems में से एक है। करीब 300 मिलियन से ज्यादा लोग इससे प्रभावित हैं। यह भी अनुमान है कि हर साल दुनियाभर की करीब 2-3% जनसंख्या को panic disorder का सामना करना पड़ता है।पैनिक अटैक के दौरान ऐसा महसूस हो सकता है कि जैसे आपकी सांस रुक रही है और आपको बहुत तेज़ डर लग रहा है।पैनिक अटैक क्या है?अचानक तेज़ डर या बेचैनी महसूस होना ही पैनिक अटैक कहलाता है। इस दौरान कुछ physical और emotional symptoms होते हैं, जैसे:दिल का तेज़ धड़कनापसीना आनासांस लेने में परेशानीसीने में दर्दउल्टी जैसा महसूस होनाचक्कर आनाडर और चिंतालेकिन अच्छी बात ये है कि पैनिक अटैक्स को मैनेज करने के कुछ आसान और असरदार तरीके हैं।पैनिक अटैक को मैनेज करने के तरीके:दीप ब्रीदिंग (Deep Breathing):4-7-8 ब्रीदिंग टेक्नीक पैनिक अटैक के दौरान सांस तेज़ और उथली हो जाती है, जिससे chest tightness हो सकता है। ऐसे में धीरे-धीरे 4 सेकंड तक सांस लें, फिर 7 सेकंड तक रोकें और धीरे-धीरे 8 सेकंड तक सांस छोड़ें। इसे ज़रूरत पड़ने पर दोहराएं। इससे काफी राहत मिल सकती है।ग्राउंडिंग टेक्नीक (5-4-3-2-1 Technique):अपने senses का इस्तेमाल करें ताकि आपका ध्यान stress से हट सके। इसके लिए आस-पास की 5 चीजें देखें, 4 चीजें छुएं, 3 आवाज़ें सुनें, 2 चीजें सूंघें और 1 चीज़ taste करें। यह तकनीक माइंडफुलनेस का हिस्सा है और anxiety कम करने में मदद करती है।पॉजिटिव अफर्मेशन (Positive Affirmations):खुद से कुछ positive बातें कहें, जैसे "मैं सेफ हूँ," "यह feeling जल्दी गुजर जाएगी," या "मैं स्ट्रॉन्ग हूँ।" ये बातें आपको नेगेटिव थॉट्स से बाहर आने में मदद करती हैं। जब आप खुद को बार-बार positive बातें कहते हैं, तो आपका mind और body धीरे-धीरे relax होने लगते हैं।शांत जगह की कल्पना करें (Imagine a Calm Place):अपनी आंखें बंद करें और खुद को किसी शांत और सुकून वाली जगह पर सोचें। वहां के visuals, sounds, और फीलिंग्स को imagine करें। इससे पैनिक सिम्पटम्स कम हो सकते हैं और आपको शांति महसूस होगी।सपोर्ट लें (Seek Support):अपनों से बात करें: अपनी feelings किसी ऐसे इंसान से शेयर करें जिस पर आप भरोसा करते हैं। किसी से बात करने से काफ़ी comfort मिलता है।प्रोफेशनल हेल्प लें: Cognitive Behavioral Therapy (CBT) जैसी थेरेपी लें, जिससे आप बेहतर coping strategies सीख सकें। कुछ मामलों में medication भी मदद कर सकता है।अगर आप पैनिक अटैक्स को ट्रिगर करने वाली चीजों को समझ लें और उनसे बचना सीख जाएं, तो उनकी frequency और intensity कम हो सकती है।याद रखें, आप अकेले नहीं हैं। सही support और सही techniques की मदद से आप पैनिक अटैक्स को मैनेज कर सकते हैं और एक खुशहाल जिंदगी जी सकते हैं।Source:- https://www.medicalnewstoday.com/articles/321510
स्ट्रोक एक गंभीर समस्या है, और अगर आप स्ट्रोक के लक्षणों को जल्दी पहचान लेते हो, तो आप किसी की जान भी बचा सकते हो। जितनी जल्दी आप स्ट्रोक के लक्षण को पहचानेगे, उतनी जल्दी किसी को मदद मिल सकती है।चलिए जानते है कि स्ट्रोक के लक्षणों को कैसे पहचानें और झटपट से क्या उपाय करें।स्ट्रोक के 5 लक्षण:अगर किसी को अचानक एक तरफ चेहरे, हाथ, या पैर में कमजोरी या सुन्न महसूस हो, तो यह स्ट्रोक का लक्षण हो सकता है। अगर कमजोरी शरीर के सिर्फ एक ही तरफ़ पर हो, तो आपको तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।Confusion भी एक आम लक्षण है। अगर किसी को बात करने या दूसरों की बातें समझने में दिक्कत हो, तो यह स्ट्रोक का लक्षण हो सकता है। लोगों की बोली थोड़ी लड़खड़ा सकती है, या उन्हें बोलने में ही दिक्कत हो सकती है।दिखायी देने में परेशानी: स्ट्रोक की वजह से आँखों से देखने में दिक्कत हो सकती है। अगर किसी को अचानक देखने में दिक्कत हो रही हो, तो इस समस्या पर ध्यान देना जरूरी है।चलने में दिक्कत: अगर चलने में परेशानी हो या संतुलित रहने में दिक्कत हो रही हो, तो यह भी स्ट्रोक का लक्षण हो सकता है। अगर कोई ठीक से नहीं चला पा रहा है, तो यह स्ट्रोक का संकेत हो सकता है।अचानक सिर दर्द होना: अगर किसी को अचानक, बहुत ज्यादा सिर दर्द हो बिना किसी वजह के, तो यह भी स्ट्रोक का एक संकेत हो सकता है। अगर यह सिर दर्द आम सिर दर्द से अलग लग रहा हो, तो बाक़ी संकेतों को ध्यान में रखना बेहद जरूरी है।अगर आपको लगता है कि किसी को स्ट्रोक हो रहा है तो क्या करें?अगर आपको लगता है कि किसी को stroke हो रहा है, तो time बहुत जरूरी है। FAST method सीखकर स्ट्रोक के संकेत को चेक करें:F (Face): व्यक्ति से मुस्कुराने को कहें। अगर उनके चेहरे का एक तरफ झुका हुआ लगे, तो यह स्ट्रोक का संकेत हो सकता है।A (Arms): : उनसे दोनों हाथ उठाने को कहें। अगर एक हाथ नीचे गिर रहा हो, तो यह एक problem हो सकती है।S (Speech): उनसे एक सरल वाक्य दोहराने को कहें। अगर उनकी बोली लड़खड़ा रही हो या स्पष्ट न हो, तो यह स्ट्रोक का संकेत हो सकता है।T (Time): अगर आप इन लक्षणों को करते हो, तो तुरंत ambulance को फ़ोन करें। क्यूंकि किसी भी मरीज़ को जल्दी मेडिकल हेल्प देना बहुत जरूरी है।यदि आपको इन लक्षणों में से कोई भी किसी व्यक्ति में दिखाई दे, तो बिल्कुल भी देरी न करें। तुरंत सहायता लें और उस व्यक्ति को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाएं ताकि उनकी जल्दी से recovery हो सके।Source:-1. https://www.niams.nih.gov/health-topics/calcium-and-vitamin-d-important-bone-health 2. https://ods.od.nih.gov/factsheets/calcium-HealthProfessional/
क्या आप जानते हैं कि आपका दिमाग़ एक muscle की तरह होता है? जैसे आप अपनी शरीर की exercise करते हो, वैसे ही आपके दिमाग़ को भी regular exercise की जरूरत होती है ताकि वो sharp और healthy रह सके।आपके दिमाग़ के लिए top 5 exercises!सुपर ब्रेन योगायह exercise आसान movements और deep breathing को मिलाकर करके बनती है। सबसे पहले अपने दाहिने हाथ से अपने दाहिने कान को massage करो और फिर अपने बाहिने हाथ से बाहिने कान को massage करो। अब साँस अंदर लेते हुए squat की position में बैठ जाओ, और साँस बाहर निकालते हुए उठ जाओ। यह कुछ मिनटों तक repeat करो। अगर आप इस exercise को daily करेंगे, तो आपकी memory बढ़ेगी और आप ज्यादा focused रहेंगे।क्रॉस क्रॉल्सCross crawls आपके दिमाग़े के दाहिने और बाहिने हिस्से के बीच बेहतर communication करने में मदद करते हैं। यह एक simple exercise है, जिसमें आप को अपना बाहिना घुटना उठाना और उसे दाहिने हाथ से छूना है। कुछ समय के बाद आप sides change कर सकते हैं। इसे लगातार 5 minute तक करते रहिए। यह coordination को improve करता है और focus भी sharpen करता है।वॉकिंग व्हाइल लिस्टनिंगचलते हुए हुए एक audiobook या podcast सुनो। Studies कहती हैं कि जब आप चलते चलते साथ में इंफ़ॉर्मर्शन सुनते हो, तो आपका दिमाग़ बेहतर तरीके से चीज़ो को याद रखता है। चलने से blood flow और oxygen दिमाग़ तक ज्यादा पहुँचती है, जो concentration में मदद करती है।माइंडफुल ब्रेन एक्सरसाइज़आप अपने उस हाथ का इस्तेमाल करना शुरू कीजिए जिसे आप कम इस्तेमाल करते हैं। आप उस हाथ को अपने दांत साफ़ करने या लिखने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसा करने से आपके दिमाग़ के अलग अलग हिस्से खुल जाते है। इससे आपका दिमाग़ flexible भी होता है।ब्रेन ब्रेक्सअपना काम करते वक्त छोटे breaks लेना आपके दिमाग़ को fresh महसूस करने में मदद करता है। हर 25-30 minutes के काम के बाद थोड़ा चलो या stretching करो। इससे mental थकान कम होती है।अगर आप यह आसान exercises अपने रूटीन में शामिल करेंगे, तो आप अपने दिमाग़ को sharp, focused और healthy रख सकेंगे।Source:- 1. https://pmc.ncbi.nlm.nih.gov/articles/PMC2680508/ 2. https://pmc.ncbi.nlm.nih.gov/articles/PMC3951958/
ADHD का full form है Attention Deficit Hyperactivity Disorder. यह एक ऐसी condition है जिस्में बच्चे जल्दी विचलित हो जाते हैं और छोटी छोटी चीजों में भी ढंग से ध्यान नहीं दे पाते है। अगर आपको लगता है कि आपके बच्चे को ADHD है, तो आप इन लक्षणों की जाँच अपने बच्चे पर ज़रूर करें:अगर आपके बच्चे को कक्षा या घर पर ध्यान देने में दिक्कत हो रही है, तो यह ADHD का लक्षण हो सकता है। ऐसे में बच्चे चीजें भूल सकते हैं, या उन्हें अपने काम ख़त्म करने में दिक्कत हो सकती है।जिन बच्चों को ADHD होता है वो सोच समझकर ढंग से काम नहीं कर पाते हैं। वो लोगों की बातों को रुकावट करते हैं, सवाल ख़त्म होने से पहले ही कुछ बोल देते हैं, या उन्हें अपनी बारी का इंतज़ार करने में दिक्कत होती है।ADHD से ग्रसित बच्चे आस पास की चीजों से आसानी से distract हो जाते हैं। उन्हें होमवर्क या पढ़ाई करने में मुश्किल होती है क्योंकि वो अपने आस-पास की हर चीज़ की ख़बर रखते हैं।ADHD वाले बच्चे जानकारी को समझने में भी struggle करते हैं। वो चीज़ों को भूल जाते हैं क्योंकि उनका ध्यान हमेशा कहीं और रहता है।कुछ ADHD वाले बच्चे बिना सोचे समझे ख़तरनाक चीजें करते हैं। वो अपनी सुरक्षा के बारे में नहीं सोचते और बिना सोचे समझे काम करते हैं।अगर आपका बच्चा हर समय नखरे करता है, तो यह ADHD का लक्षण हो सकता है। कुछ बच्चों को ADHD के कारण Oppositional Defiant Disorder जैसे और भी issues हो सकते हैं।ADHD के साथ साथ कुछ बच्चों को चीज़ें सीखने में भी दिक्कत हो सकती हैं, जैसे पढ़ाई या बोलने में मुश्किल। बच्चों को social skills सीखने में भी परेशानी हो सकती है, जो दोस्तों के साथ उनके संबंधों पर असर डाल सकता है।ADHD वाले बच्चे बेचैन या दुखी भी महसूस करते हैं, लेकिन कभी कभी उनके बर्ताव के कारण में यह लक्षण माता पिता समझ नहीं पाते है।ADHD family history के कारण भी हो सकता है। अगर आपके किसी घर वाले को ADHD है, तो आपके बच्चे को ADHD होने के chances बढ़ सकते है।ADHD के कारण बच्चे की पढ़ाई और दोस्ती पर असर डाल सकता है, लेकिन सही मदद के साथ आपका बच्चा अच्छा कर सकता है।अगर आपको अपने बच्चे को लेकर चिंता हो रही है, तो doctor से बात करना एक सही विकल्प है।Source:- 1. https://www.nimh.nih.gov/health/topics/attention-deficit-hyperactivity-disorder-adhd 2. https://www.nimh.nih.gov/health/publications/attention-deficit-hyperactivity-disorder-what-you-need-to-know
Vertigo एक ऐसी condition है जिसमें आपको ऐसा महसूस हो सकता है कि आपके आसपास सबकुछ घूम रहा है, फिर भले ही आप stable क्यों ना हों। इसे हम आम भाषा में "चक्कर आना" भी कहते हैं। यह कोई बीमारी नहीं है, बल्कि किसी और समस्या का लक्षण हो सकता है।Vertigo को घर पर ही ठीक करने के कुछ आसान नुस्ख़े।Vertigo होने का एक main कारण पानी कम पीना होता है। इसलिए दिन भर अच्छे से पानी पिए। एक water bottle भी अपने पास रखें, ताकि आप पानी पीना ना भूलें। और तो और आप अपनी diet में water rich foods जैसे खीरा, टमाटर, तरबूज़, संतरा, स्ट्रॉबेरी और नारियल का पानी शामिल कर सकते हैं।Junk foods जैसे chips, chocolates, cookies और soda खाना avoid करें। ऐसे foods खाने से शरीर में inflammation बढ़ता है और blood circulation ख़राब हो जाता है, जो vertigo को बढ़ाता है। लेकिन अच्छी बात यह है कि आप अपनी diet में Vitamin D rich foods शामिल करके Vertigo को manage कर सकते हैं।Vitamin D rich foods हड्डियों को मज़बूत बनाते हैं और blood circulation को भी बेहतर करते हैं। इसलिए अपनी diet में मशरुम, tuna, salmon, broccoli और cheese शामिल करें।अदरक भी vertigo को ठीक करने में मदद करता है। इसमें मौजूद gingerol और shogaol नाम के compounds blood circulation को बेहतर करते हैं और nervous system को balanced रखते हैं। आप अदरक को कच्चा खा सकते है या फिर अदरक की चाय बनाकर भी पी सकते है।Simple exercises जैसे चलने और योगा करने से vertigo में राहत मिलती है क्योंकि ये exercises शरीर का balance सुधारते हैं और blood circulation को बेहतर करते हैं। वृक्षासन, शवासन, बालासन, और वज्रासन जैसे आसन vertigo को कम करने में मदद करते हैं। ये दिमाग़ को शांत रखते हैं और नसों को मजबूत बनाते हैं।अपना ख्याल रखें और ज़रूरत पड़े तो doctor की मदद लेना ना भूलें।Source:-1. https://www.webmd.com/brain/vertigo-symptoms-causes-treatment2. https://newsinhealth.nih.gov/2021/11/dealing-dizziness3. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/books/NBK482356/4. https://pmc.ncbi.nlm.nih.gov/articles/PMC2696792/5. https://www.webmd.com/brain/remedies-vertigo
Autism Spectrum Disorder (ASD) एक condition है जो लोगों के brain development को प्रभावित करती है। यह condition बचपन में शुरू होती है और जीवनभर व्यक्ति इससे जूझता रहता है। Autism Spectrum Disorder की वजह से व्यक्ति का लोगों के साथ बातचीत करने का तरीका, communicate करना और कुछ सीखने का तरीका काफी प्रभावित होते हैं।ASD अलग-अलग लोगों को अलग-अलग तरह से प्रभावित करता है, इसलिए इसको spectrum के नाम से जाना जाता है। कुछ लोग जिन्हें ASD है, उन्हें दूसरों से बात करने या आँखों में देखकर बात करने में कठिनाई हो सकती है। उनके interests काफी अलग हो सकते हैं और कुछ चीज़ों को बार बार repeat करते हैं। जैसे, वह चीजों को व्यवस्थित करने में बहुत समय बिताते हैं या एक ही शब्द को बार बार दोहराते रहते हैं। कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे वे अपनी ही दुनिया में हैं।ASD के कुछ common symptoms हैं:Social Interaction और communication में कठिनाई:आँखों में आँखें डालकर बात करने से बचना9 महीने की उम्र में भी अपना नाम सुनकर respond ना करना9 महीने की उम्र में भी ख़ुशी, दुःख, गुस्सा, या चौंकने वाले expressions न दिखा पाना12 महीने की उम्र तक बहुत कम या कोई भी इशारा न करना (जैसे, bye कहने के लिए हाथ भी न हिलाना)18 महीने की उम्र में भी कोई interesting चीज़ दिखाने के लिए उसकी ओर इशारा न करना48 महीने (4 साल) की उम्र में भी खेल खेल में अपने आप को teacher या सुपरहीरो बनने का नाटक न करना60 महीने (5 साल) की उम्र में भी गाना, नाचना या acting न करनाRestricted या Repetitive व्यवहार होना, जैसे:खिलौनों या अन्य वस्तुओं को एक line में लगाना और क्रम बदलने पर परेशान हो जानाWords या sentences को बार-बार दोहरानाखिलौनों के साथ हर बार सिर्फ एक ही तरीके से खेलनाछोटे बदलावों से परेशान हो जानाहाथ और शरीर को हिलाना या खुद को गोल-गोल घुमानाचीजों की sound, smell, taste, feel या look पर कुछ अलग सी प्रतिक्रिया देना।अन्य लक्षण, जैसे:Language skills के development में देरीMovement skills के development में देरीCognitive or learning skills के development में देरीHyperactive, impulsive, और attentive ना रहने वाला व्यवहारमिर्गी या दौरा पडनाUncommon खाने और सोने की आदतेंपाचन तंत्र की समस्याएँ (जैसे, कब्ज़))Uncommon mood या emotional reactionsचिंता, तनाव या बहुत ज़्यादा चिंता करनाबिल्क़ुल डर न लगना या बहुत ज़्यादा डर लगनाइन लक्षणों को सही समय पर समझना बहुत ज़रूरी है ताकि हम सही समय पर इससे जूझ रहे लोगों की भलाई के लिए सही कदम उठा पाएं।Source:- https://www.cdc.gov/autism/signs-symptoms/
ASD की screening mainly छोटे बच्चों के लिए की जाती है ताकि पता लगाया जा सके कि बच्चे में ASD के शुरूआती symptoms तो नहीं हैं। हालांकि, adults के लिए भी ASD की screening की जाती है।बच्चों के मामले में, डॉक्टर 2 साल की उम्र से पहले screening के लिए regular check up करते हैं। ASD के symptoms देखने के लिए उन बड़े बच्चों और adults की भी screening की जा सकती है जिनको कभी ASD diagnose ना हुआ हो।ASD की screening के तो तरीके हैं लेकिन screening से ASD diagnose नहीं किया जा सकता। यदि screening से पता चलता है कि बच्चे में disorder होने के chances हैं, तो ASD का diagnosis करने के लिए और tests की ज़रुरत होती है।बच्चों में ASD की screening:ज़्यादातर बच्चों के डॉक्टर या नर्स ही बच्चों में ASD की screening करते हैं।Questionnaires: इस process में parents से questionnaire भरवाया जाता है जिसमें बच्चे के development और behaviour से सम्बंधित उनके speech, movement, thinking, और emotions, के बारे में प्रश्न होते हैं। देखा गया है कि ASD genes में भी होता है, इसलिए उनसे family history से सम्बंधित प्रश्न भी पूछे जाते हैं।Observation: डॉक्टर/नर्स यह observation करते हैं कि बच्चा कैसे खेलता है और कैसे बातचीत करता है। उदाहरण के लिए, वे observe कर सकते हैं कि बच्चा आपके हंसने पर respond करता है या नहीं या फिर किसी दूसरे व्यक्ति के बुलाने पर उनकी तरफ देखता है या नहीं। Respond ना करना ASD का संकेत हो सकता है।Interactive Screening Test: ये test खेलने की activities जैसा है, जैसे गुड़ियों या अन्य खिलौनों के साथ कोई role play करना। ये test बच्चे के communication skills, social behavior, और दूसरी abilities का पता लगाने में मदद करता है।Adults में ASD की Screening:ASD की screening के लिए, psychologist या psychiatrist ये सब कर सकते हैं:आपकी life से जुड़े रोज़ के challanges के बारे में बात करनाSymptoms से related एक questionnaire भरने के लिए कहनाउन परिवार के लोगों से बात करने की सलाह दे सकते हैं जिन्हे याद हो कि आप बचपन में कैसे थेDepression, ADHD या Anxiety के लिए screening test करना, क्यूंकि ASD से जूझ रहे लोगों में ये सब आज कल बहुत ही आम बात है।याद रखें, इस screening के लिए कोई भी तैयारी की ज़रुरत नहीं है और Autism Spectrum Disorder screening से कोई risks भी नहीं हैं।ASD की screening के लिए doctor से consult करना बेहतर होगा। लेकिन यदि आप पहले से ही अपनी condition को थोड़ा समझना चाहते हैं, तो इस link पर click karke और Medwiki के Mental Health calculator का इस्तेमाल करें।Source:- https://medlineplus.gov/lab-tests/autism-spectrum-disorder-asd-screening/
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ब्लूबेरीज़ के फायदे: Antioxidants और Flavonoids आपकी memory और cognitive function को बूस्ट करते है!
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सिर दर्द से परेशान?
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Narcissistic Personality Disorder: All about loving oneself!
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Mrs. Prerna Trivedi
Nutritionist
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Dr. Beauty Gupta
Doctor of Pharmacy